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खण्ड 4 :
प्रेम-सिन्धु

47. बापू की गोद में साँप

महात्माजी ने प्रयत्नपूर्वक अपने जीवन से भय को मिटाया था । बचपन में अँधेरे में जाने से डरनेवाला यह मोहनदास आगे चलकर निर्भयता का मूर्त रूप बना ।

साबरमती-आश्रम की बात है । एक बार बैठे थे, तब एक साँप उनकी गोद में ऊपर से गिर पडा़ । गांधीजी उनकी ओर देखते रहे । वह क्यी गांधीजी की गोद में क्षणभर के लिए लेटने आया था ? प्रेमामृत का मिठास चखने आया था ? जिसे सारे विश्व में परमेश्वर दीखता है, उसे किसी का डर क्यों लगेगा ?

एक बार किसीने गांधीजी से पूछाः

“गांधीजी, सामने से बाघ आये, तो आप क्या करेंगे ?”

बापू बोलेः “मैं तो निर्भय होकर उसके आगे से निकलूँगा । मेरे साथ क्या करना है, यह बाघ तय करे ।”