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खण्ड 4 :
प्रेम-सिन्धु

43. गांधीजी की वत्सलता

उन दिनों महात्माजी दक्षिण अफ्रीका में थे । एक बडा़ खेत लेकर वहाँ ‘फिनिक्स’ नाम से उन्होंने आश्रम शुरू किया था । सबने शरीर-श्रम का व्रत लिया था । महात्माजी तड़के उठते थे । अनाज पीसते थे, पानी भरते थे, जूता गाँठते थे, बढ़ईगिरी करके थे । और भी अनेक काम करते थे । सबकी देखभाल भी वे ही करते थे ।

आश्रम में एक भाई की लड़की बहुत बीमार थी । गांधीजी उसे गोद में लेते थे । वह लड़की गांधीजी से चिपककर बैठती थी । दिनभर तो दूसरे कामों से उन्हें फुरसत नहीं मिलती थी ।

शाम हुई । अंधकार की छाया फैलने लगी । अनन्त आकाश के नीचे आश्रमवासी प्रार्थना के लिए एकत्र हुए । वह देखो, बापू आये । पलथी लगाकर बैठे । लेकिन उनकी गोद में वह क्या है ? वही छोटी बीमार बच्ची । थके-माँदे घर लौटे बापू उस बच्ची को गोद में लेकर टहल रहे थे । वह बच्ची उनसे लिपटकर सोयी हुई थी । इतने में प्रार्थना की घंटी बजी । वह बच्ची कहीं जाग न पडे़, इसलिए उसे उसी तरह गोद में लिये हुए बापू आये। प्यार से, आहिस्ते से उसे अपनी गोद में लिटा लिया । वह नन्हीं बच्ची सोयी थी । प्रार्थना प्रारम्भ हुई । गांधीजी की गोद में लेटी वह छोटी बच्ची और गांधीजी, दोनों विश्वमाता से एकरूप बन गये । अनन्त आकाश के नीचे गोद में बीमार बच्ची को लेकर प्रार्थना में लीन बापू ! कितना हृदयस्पर्शी दृश्य ।