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खण्ड 4 : प्रेम-सिन्धु

41. गांधीजी की निर्भयता

सन् 1931 की बात है । सन् 1930 का स्वातंत्र्य-संग्राम सफल हुआ था । वाइसराय और महात्माजी के बीच सुलह हुई और सभी सत्याग्रही छूट गये थे । दिल्ली में गांधी-इर्विन समझौता हुआ था, उस पर मुहर लगाने के लिए कराची में कांग्रेस का अधिवेशन मार्च के अंतिम सप्ताह में होनेवाला था । किन्तु उस अधिवेशन पर काली छाया मँडरा रही थी । अधिवेशन प्रारम्भ होने के एक-दो दिन पहले सरदार भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी दी गयी थी । सरकार और कांग्रेस के बीच सौहार्द निर्माण होने जा रहा था, ऐसे समय में उन महान् तरुण देशभक्तों को फाँसी देना घृष्टता ही कही जायगी । कराची कांग्रेस में फूट पैदा हो, यह भी सरकार का हेतु रहा हो । सीमांत प्रदेश के लाल कुर्तीवाले खुदाई खिदमतगारों की धारणा बनी थी कि फाँसी की सजा रद्द कराने में गांधीजी ने खास कोशिश नहीं की । निश्चित ही यह धारणा गलत थी । महात्माजी ने हर संभव प्रयत्न किया था । फिर भी नौजवान क्षुब्ध हो उठे थे ।

महात्माजी कराची-कांग्रेस के लिए जा रहे थे । रास्ते में लाल कुर्तीवालों ने उन्हें काले फूल दिये । यह निषेध का प्रतीक था । वे कराची पहुँचे । अधिवेशन प्रारम्भ हुआ । उस दिन महात्माजी ने शांति से उस प्रतीक को स्वीकार किया । उसे सुरक्षित रखा। रात में एक विराट् सभा का आयोजन किया गया था । उस सभा में महात्माजी बोलनेवाले थे । प्रक्षुब्ध जवान तथा लाल कुर्तीवालों के समूह के सामने वे बोलने जा रहे थे । महात्माजी से बार-बार विनती की गयी कि आप सभा में न जाँय, भीड़ उत्तेजना में है । उन्होंने कहाः “इसीलिए तो मुझे जाना चाहिए । मुझ पर ही उन्हें क्रोध है । उसे शांत करने के लिए मुझे ही जाना चाहिए ।”

और यह महापुरुष धीर-गंभीरता के साथ निकल पडा़ । दीखने में छोटी, परन्तु आत्मशक्ति से महान् वह मूर्ति ऊँचे मंच पर चढी़ । सामने प्रक्षुब्ध नौजवानों की भीड़ थी । एक क्षण के लिए चारों ओर शांति छा गयी । महात्माजी ने शांतिपूर्वक चारों ओर नजर घुमायी । फिर वह अमर वाणी प्रवाहित होने लगी । अन्त में गांधीजी ने कहाः मेरी यह मुट्ठीभर हड्डी आप लोग अनयास तोड़ सकते हैं । परन्तु जिस तत्व के लिए मैं खडा़ हूँ, और जिन तत्वों का मैं उपासक हूँ, उन्हें कौन तोड़ सकता है ? वे तो शाश्वत सत्य हैं ।”

सभा को भंग करने के इरादे से आये हु्ए नौजवान प्रणाम करके सिसकते हुए लौट गये और राष्ट्रपिता शान्ति से अपने खेमे में लौट आया ।