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खण्ड 3 :
कर्म-योगी

36. टहलने का व्यायाम

दाण्डी-कूच के समय गांधीजी के साथ 80 सत्याग्रहियों को टुकडी़ थी । दण्डधारी गांधीजी अपना थैला कन्धे पर लटकाकर सबसे आगे रहते थे । शहामृग (एक बडा़ और ऊँचा पक्षी) की तरह लम्बी टाँगे भरते हुए वे चलते थे । मंद गति गांधीजी को कभी पसन्द नहीं थी । घूमने जाते, तब भी तेज चलते थे । घूमना उनका व्यायाम था ।

महात्माजी के साथी सत्याग्रही थक जाते थे । अन्त में महात्माजी ने ‘यंग इंडिया’ में व्यायाम पर एक लेख लिखा । महात्माजी अहिंसा के उपासक थे, इसका अर्थ कई लोग यह करते हैं कि वे दुर्बलता पसंद करते थे । यह विलकुल गलत धारणा है। महात्माजी नीरोगी और शक्तिसम्पन्न शरीर चाहते थे । उससे भी अधिक शक्तिशाली मन चाहते थे । राष्ट्र को सत्याग्रह का सन्देश देनेवाला राष्ट्रपिता उस समय व्यायाम पर लेख लिखने लगा । और उस लेख में वे लिकते हैः “कम-से-कम टहलने का व्यायाम तो सब कर सकते हैं । टहलना सारे व्यायामों का राजा है ।”