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खण्ड 3 :
कर्म-योगी

35. आगाखाँ-महल में बापू का दिनक्रम

‘भारत छोडो़’ आन्दोलन चल रहा था । बापूजी, कस्तूरबा, महादेवभाई, प्यारेलालजी, डा. गिल्डर, डा. सुशीला नैयर, सरोजिनीदेवी वगैरह लोग पूना में, आगाखाँ-महल में नजरबन्द थे ।

श्री महादेवभाई तो 15 अगस्त को ही स्वर्ग सिधार गये । जेल गये सप्ताहभर भी नहीं बीता था । बा और बापू के मन पर बडा़ क्रूर आघात था वह ! सब लोग सारा दुःख पीकर रह गये ।

जेल में समय कैसे काटे ? रात में कभी-कभी कस्तूरबा, डा. गिल्डर और अन्य लोग कैरम खेलते थे । बा को कैरम बडा़ प्रिय था । वे अच्छा खेलती भी थीं ।

बापू भी तरह-तरह के खेल खेलते थे । बैडमिंटन, पिंगपांग वगैरह खेलते थे । बापू पहली बार पिंगपांग खेलने आये, उस दिन वे छोटे बल्ले से गेंद लौटाने को ही थे कि इतने में वह उनके माथे से टकराकर लौट गया। सब हँस पडे़ ।

एक बार सबने मजे की पोशाक पहनने का निश्चय किया । डा. गिल्डर ने बलूची पठान की पोशाक पहनी । बापू की हँसी रोके न रुकती थी ।

डा. गिल्डर का जन्म-दिन आया, तो बापू ने अपने हाथ से रूमाल पर उनका नाम अंकित कर उन्हें रूमाल भेट किया । राष्ट्र को मुक्त करनेवाला महात्मा आगाखाँ-महल में सिलाई-कढा़ई का भी काम करता था ।

परन्तु एक बात ने मुझे गदगद कर दिया । बा की अवस्था 70 के लगभग थी । बापूजी ने 70 पूरे कर लिये थे । समय काटने के लिए बापू कस्तूरबा को भूगोल सिखाते थे । पूज्य विनोबाजी कहते थेः “भूगोल जैसा सरस विषय दूसरा नहीं है ।’’ भारत का पिता वृद्ध कस्तूरबा को जेल में भूगोल सिखा रहा है-यह दृश्य आँख के सामने आते ही मेरा हृदय उमड़ आता है । कैसा मधुर, मंगल, सहृदय दृश्य था !