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खण्ड 2 :
राष्ट्रपिता

23. भारत का बादशाह

गांधीजी यरवदा में थे । किसी विदेशी ने गांधीजी को एक पत्र लिखा था । पता नहीं, वह विदेशी उम्र से छोटा था या बडा़ । शायद वह बालक रहा होगा । अन्थया ऐसी निर्मलता कैसे आती ?

उस पत्र में क्या था, कौन जानता है ? आज वह पत्र कहीं है भी या नहीं, मालूम नहीं । परन्तु दिल्ली के राजघाट पर जो प्रदर्शनी हुई, उसमें उस पत्र का लिफाफा रखा था । उस लिफाफे पर का निम्न पता पढो़ और गदगद होओः

To

The King of India,

Delhi,(India)

[भारत के बादशाह को, दिल्ली । (भारत)]

यह पता उस पत्र पर था । अन्दर जो बातें लिखी थीं, उन पर से मालूम हुआ कि पत्र गांधीजी को लिखा गया था, इसलिए वह पत्र आखिर यरवदा पहुँचा । भारत का बादशाह ब्रिटिशों की जेल में था । भारतीय जनता का सच्चा सम्राट् इंग्लैण्ड में नहीं था । पत्र भेजनेवाले उस अज्ञात व्यक्ति को लगा कि भारत के सम्राट् महात्माजी हैं । कितना बडा़ सत्य है ! दूसरे राजा आयेंगे, जायेंगे । परन्तु इस राजा का सिहासन तो भारतीयों के ही नहीं, संसार के सब लोगों के हृदय में सनातन काल तक स्थिर रहेगा । क्योंकि सत्य और प्रेम की बुनियाद पर वह सिंहासन स्थिर है ।