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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता

19. नसीहत देनेवाले बापू

एक बार बंगाल के सफर में गांधीजी एक जमीनदार के घर ठहरे थे । यह जमींदार अपनी आदत के अनुसार हर काम के लिए नौकरों का उपयोग करता था । नौकरों की सारी भागदौड़ इस जमींदार का काम करने के लिए थी ।

एक दिन बँगले के बरामदे में सदा की भाँति गांधीजी प्रार्थना के लिए उच्च आसन पर बैठे । उनकी प्रार्थना और बाद का प्रवचन सुनने के लिए बहुत सारे लोग सामने बैठे थे । उन दिनों गांधीजी बत्ती बुझाकर प्रार्थना किया करते थे । प्रार्थना के समय जमींदार गांधीजी के पास आकर बैठा । प्रार्थना शुरू होने से पहले गांधीजी ने जमींदार को बत्ती बुझा देने को कहा । बत्ती का बटन जमींदार के सिर पर ही था । परन्तु अपनी आदत के अनुसार उन्होंने नौकर को बुलाया ।

इतने में चमत्कार हुआ । बत्तियाँ एकाएक बुझ गयीं और अंधेरे में प्रार्थना का आरम्भ हुआ । गांधीजी ने स्वयं उठकर चट से बटन दबा दिया था ।

प्रार्थना के बाद प्रश्नोत्तर के समय गांधीजी ने प्रसंगवशात् कहाः “आजकल के पढ़े-लिखे और धनी लोगों को शरीर-श्रम करने में लज्जा आती है, उसे वे हीन काम मानते हैं, लेकिन यह गलत है । गीता में तो कहा है कि जो शरीर श्रम न करके खाता है, वह चोर है ।’’

जमीदार को अपनी भूल मालूम हुई । उस पर किया गया व्यंग वह भाप गया और बाद में...

बाद में एक मजेदार बात हुई । भीड़ के कारण पास की एक टेबुल लुढ़क गयी और उस पर रखा चीनी मिट्टी का गमला नीचे गिरकर चूर-चूर हो गया । फौरन जमींदार उच्च आसन से कूद पडा़ और फूटे गमले के टुकड़े समेटने लगा ।

थोडी़ ही देर में उन टुकडो़ को बटोरने के लिए नौकर दौडे़ आये । परन्तु मालिक ही घुटने के बल बैठकर टुकडें बटोर रहा था ।

यह दृश्य गांधीजी ने नहीं देखा । परन्तु उनके शब्दों ने तो अनजाने ही अपना काम कर दिया था ।

बापूजी का दैनिक जीवन नसीहतों से भरा हुआ था ।

उनके जीवन का प्रत्येक क्षण संसार को संन्देश देता था ।