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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता

16. बापू का आशीर्वाद जीवन-परिवर्तनकारी

तब महात्माजी सेवाग्राम आ गये थे । वे रोज सुबह-शाम घूमने जाते थे । एक बार एक धनी मारवाड़ी गांधीजी से मिलने आये । उनके पुत्र का हाल में ही विवाह हुआ था । पुत्र और पुत्र-वधू से बापूजी के चरणों में प्रणाम कराने की उनकी इच्छा थी । उस पिता की बडी़ उत्कष्ठा थी कि वर-वधू को बापूजी का मंगल आशीर्वाद मिले ।

उनसे कहा गयाः “आप सुबह आइये । बापू जब घूमने जाते हैं, तब रास्ते में मिलये । पुत्र और पुत्रवधू को लेते आइये ।’’

“रास्ते में निश्चित ही मिलेंगे न ? आप लोग नाराज तो नहीं होंगे ?”

“हम नाराज हों तो भी बापूजी थोडे़ ही नाराज होनेवाले हैं ? सुबह रास्ते में मिलेये ।’’

वह श्रद्धालु मारवाडी़ गया और सुबह होने की प्रतीक्षा करता रहा । सब लोग जल्दी उठे । वधू, वर, वर के माता-पिता निकल पडे़ । जिस रास्ते से महात्माजी घूमने निकलते थे, उसी रास्ते पर राह देखते सब लोग खड़े थे ।

पक्षी चहचहाने लगे । सृष्टि प्रसन्न थी और उधर से महात्माजी के मुक्त हास्य की शुभ ध्वनि सुनायी दी । आ गये, महात्माजी आ गये । भारत के भाग्यविधाता चले आ रहे थे ।

मारवाडी़ ने कहाः “चरण छुओ । महात्माजी के चरण छुओ ।’’

वधू-वर ने उन पवित्र चरणों पर मस्तक रखा । महात्माजी ने प्रेम से उन्हें उठाया । एक क्षण बापू गम्भीर बनकर खडे़ रहे । लेकिन क्यों ?

उस वधू के चेहरे पर घूँघट था, पर्दा था । यह गुलामी बापू कैसे सहन कर सकते थे ? आँख के रहते अन्धे बनकर रहना ? पवित्रता तो मुक्तता में ही खिलती है । बापूजी ने उस लड़की का घूँघट चेहरे पर से हटाया । उसके श्वशुर बोलेः

“मैंने यह पर्दा हटाया है । इस लड़की के मुखमण्डल को इसी तरह हमेशा खुला रखो । फिर से यह घूँघट चेहरे पर आने न पाये ।’’

“जैसी आपकी आज्ञा ! आपकी आज्ञा के विरुद्ध हम नहीं है । आपका आशीर्वाद चाहिए ।’’ श्वशुर बोले ।

“जो भला है, उसे प्रभु का आशीर्वाद सदा रहता ही है ।’’ इतना कहा और उन वर-वधू के मस्तक पर मंगलमय हाथ रखकर महात्माजी तेजी से आगे बढ़ गये ।

भारत को मुक्त करनेवाला महात्मा भारत के सब लोगों के जीवन में सच्ची आजादी लाना चाहता था । कितने ही लोगों के जीवन में बापूजी ने ऐसी क्रांति लायी होगी ! वह सारा इतिहास संसार को कौन सुनायेगा ? बापू के जैसा क्रांतिकारी दूसरा हुआ नहीं ।