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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

12. बापू की मर्यादा

गोलमेज-परिषद् के समय किसी पत्र में यह छप गया कि सन् 21 में प्रिन्स आँफ वेल्स जब भारत गये, तब गांधीजी उनके चरणों पर गिरे गांधीजी से पूछा गया तो वे बोलेः “ऐसी मनगढंत बातें बनानेवाली । कल्पना-शक्ति अर्थशून्य है । मैं हरिजनों और भंगियों के आगे नतमस्तक होऊँगा, उनकी चरण-रज अपने माथे पर लगाऊँगा । परन्तु राजा के आगे कभी मस्तक झुकनेवाला नहीं हूँ । तब राजकुमार की बात ही क्या ? मदान्ध साम्राज्यशाही सत्ता के वे प्रतीक हैं । भले ही मुझे हाथी अपने पैरों तले रौंद दे, पर मैं उनके सामने सिर नहीं झुकाऊँगा । लेकिन भूल ले चींटी पर भी पैर पड़ जाय, तो मैं उसे प्रणाम करूँगा ।’’