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खण्ड 1 :
कला-प्रेमी और विनोद

6. कन्याकुमारी का दर्शन

कुछ महीने पहले जयप्रकाश बाबू मद्रास प्रांत के दौरे पर गये थे । तब उनकी धर्मपत्नी प्रभावतीदेवी भी छाया की तरह उनके साथ रहने लगी थीं । कन्याकुमारी के दर्शन के लिए दोनों गये थे । साथ में मित्र भी थे । भारत का अन्तिम छोर ! दो महासागर मिल रहे हैं, उमड़ रहे है । उधर से अरब सागर और इधर से बंगाल का उपसमुद्र दोनों हाथ मिला रहे हैं । कहते हैं, अत्यन्त गम्भीर और उदात्त दर्शन है वह ! वहाँ एक ओर सूर्य अस्त होता दिखाई देता है, तो दूसरी ओर चन्द्रमा उदित होता दिखाई देता है । पूर्व-पश्चिम समुद्रों के मिलन का भव्य दृश्य ! वहाँ का दृश्य देखकर स्वामी विवेकानन्द को समाधि लग गयी थी । वह दृश्य देखकर गांधीजी भाव-विभोर हो गये । प्रकृति का सौन्दर्य देखते बैठने के लिए गांधीजी के पास समय कहाँ ? लेकिन उनका एक फोटो ऐसा भी है, जब विलायत जाते समय रात में जहाज से सागर की ओर वे देख रहे हैं । देशबंधु चित्तरंजन दास की बीमारी के समय उनके साथ गांधीजी दार्जिलिंग में रहे थे । वहाँ से हिमालय दिखाई पड़ता था । गांधीजी ने अपने गुजराती ‘नवजीवन’ में उस दृश्य का बडा़ सुन्दर वर्णन किया था ! कहते हैं कि कन्याकुमारी के दर्शन का भी गांधीजी के चित्त पर विलक्षण प्रभाव पडा़ था ।

जयप्रकाशजी और प्रभावतीदेवी ने वह उदात्त दृश्य देखा । उस दिन शुक्रवार था । महात्माजी का निर्वाण-दिवस था । उस दिन प्रभावतीजी उपवास रखती हैं । वे समुद्र-स्नान करने आयी थीं । वह अमर दृश्य देखकर वे अपने कमरे में आयीं और कातने बैठीं ।

गांधीजी के साथ पहले भी वे उसी कमरे में ठहरी थीं । गांधीजी शिस कमरे में रहे थे, वही था यह कमरा । प्रभावतीजी के मन में सैकडो़ स्मृतियाँ जागृत हुई ।

“गांधीजी यहीं ठहरे थे ।’’ यही वे बोलीं। उनसे अधिक बोला नहीं जा रहा था । बापूजी का स्मरण करते हुए वह सो गयीं ।