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खण्ड 5 :
ज्योति-पुरूष

56. अन्धविश्वास पर कुल्हाडी़

सन् 1930 का अप्रैल का महीना । दाँडी-कूच पूरा हो गया था । गांधीजी ने नमक का सत्याग्रह किया था । अब वे सिन्दी (खजूर) का पेड़ काटने का सत्याग्रह कर रहे थे । कराडी नामक गाँव में पडा़व था । वह देख रहे हो न छोटी-सी झोपडी़ ? उसी में गांधीजी रहते थे ।

एक दिन प्रातःकाल अनोखा ही ढंग देखने में आया । गाँववालों ने बडा़ जुलूस निकाला । जुलूस में स्त्रियाँ भी थीं । वे सबसे आगे थीं । सामने राष्ट्रध्वज था । बाजे बज रहे थे । यह कैसा जुलूस है ? ये सारे लोग क्या सत्याग्रह करने जा रहे थे ? पुरूषों के हाथ में फल, फूल, पैसे हैं । यह सब क्या है ?

गांधीजी झोपडी़ से बाहर निकले । लगातार जयजयकार होने लगी । उन सबने भक्तिपूर्वक प्रणाम कर अपना उपहार गांधीजी के चरणों में समर्पित किया ।

बापूजी ने पूछाः ‘‘कैसे आये ? यह बाजा किसलिए ?’’

उनके नेता ने कहाः ‘‘महात्माजी, हमारे गाँव में हमेशा पानी का अकाल रहता है । गरमी के दिन आये कि कुएँ सूख जाते हैं । पानी की बडी़ कठिनाई होती है । लेकिन आश्चर्य है बापू हमारे गाँव में आपके चरण पड़ते ही सारे कुओं में पानी भर आया । फिर हमारे हृदय भक्ति भाव से क्यों न भर जायँ ?’’

तुम लोग पागल हो। मेरे आने का और इस पानी का क्या संबध है ? ईश्वर पर मेरा अधिकार थोडे़ ही है ? उसके पास आपकी वाणी का जो मूल्य है, उतना ही मेरा वाणी का है । पागलों की तरह बोलो नहीं ।’’ गांधीजी ने कठोरता से कहा ।

कुछ समय बीती । राष्ट्रपिता हँसे और कहाः ‘‘यह देखो, पेड़ पर कौआ बैठने और पेड़ टूटने का संयोग हो आये तो क्या यह कहोगे कि कौए ने पेड़ तोड़ दिया ? और भी कई कारण होते हैं । तुम्हारे कुएँ में पानी आया, पृथ्वी के गर्भा में कुछ भी उथल-पुथल हुई होगी और नया झरना फूटा होगा । है कि नहीं। व्यर्थ में बाल-कल्पना न करो । तुम सबके सब लोग पहले सूत कातने लगो । भारतमाता को कपडा़ चाहिए न ?’’

सारी जनता प्रणाम करके गयी । हाथ में तेज धारवाली कुल्हाडी़ लेकर राष्ट्र का पिता, वह महान् सत्याग्रही सिंदी के पेड़ काटने के लिए बाहर निकल पडा़ ।