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खण्ड 5 :
ज्योति-पुरूष

49. बापू की छटपटाहट

बापू की करूणा जनक मृत्यु से कुछ ही पहले की बात है । मीराबहन दिल्ली आयी हुई थीं । मीराबहन हिमालय की तराइयों में (ऋषिकेश के पास ) एक गाँव में गोशाला चला रही हैं। गाय-बैलों के मल-मुत्र का कृषि में बढ़िया उपयोग कर रही हैं । इंग्लैण्ड के एक जल सेना-अधिकारी की वे पुत्री हैं । भारत की जनता की सेवा में अपने को समर्पित करने के निश्चय से वे भारत आयीं । महात्माजी के तत्त्वज्ञान की वे बेजोड़ उपासक बनीं । वे साधक मनोवृत्तिवाली बहन हैं । विवेकानन्द के साथ जैसी भगिनी निवेदिती थीं, वैसी गांधीजी के साथ मीरीबहन थीं ।

मीराबहन ने गांधीजी से कहाः ‘‘बापू, एक बार ऋषिकेश आइये न ? मेरे लिए न सही, अपने प्रिय गायों के लिए तो आइये । कितनी सुन्दर गायें हैं  ?’’

बापू बोलेः ‘‘मैं इस समय मृतवत् हूँ। मुझे क्यों बुलाती हो ?’’

देशभर में साम्प्रदायिक खूनखराबी हो रही थी । मैं कह रहा हूँ, लेकिन मेरी कौन सुनता है, मैं अपने को अकेला महसूस कर रहा हूँ । यह कत्लेआम देखने के बजाय मर जाना अच्छा, ऐसा उनको लगता था । लेकिन मीराबहन की करूणामय और दुःखी मुद्रा देखकर बापू फिर गम्भीरता से बोलेः

‘‘मैं मरने के बाद सबसें अधिक एकरूप हो जाऊँगा । शरीर का बन्धन टूट जायगा, आत्मा मुक्त हो जायेगी । सबमें मिल जाऊँगा। ठीक है न  ?’’