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खण्ड 4 :
सत्याग्रही

46. गफलत खतरनाक है

मीराबहन को हिन्दुस्तान आये अधिक दिन नहीं हुए थे । गांधीजी की तालीम में वे शिक्षित हो रही थीं । वे दिल्ली में डाँ अन्सारी के यहाँ गयीं । मुसलमानों के आतिथ्य की सीमा नहीं रहती । मीराबहन को पान का बीडा़ दिया गया ।

उन्होंने ‘ना’ कहा ।

‘‘पान खाने में क्या बुराई है ? पान तो भारतीय सत्कार का चिह्न है । यह आरोग्य की दृष्टि से भी अच्छा है ।’’ डाँक्टर पान की महिमा गाने लगे ।

उन्हें बुरा न लगे, इसलिए मीराबहन ने पान खा लिया । लेकिन उन्हें लगा कि यह ठीक नहीं किया । उन्होंने यह बात बापू को लिख दी । यह भी पूछा कि कहीं भूल तो नहीं हुई ? भूल हुई तो क्षमा करें, यह भी लिख दिया ।

गांधीजी ने नम्न आशय का उत्तर दियाः

‘‘डाँक्टर साहब का ऐसा आग्रह करना ठीक नहीं था । साधक के लिए अनावश्यक वस्तुओं का स्वीकार करना उचित नहीं है । मुसलमान लोग पान देना सभ्यता और प्रेमपूर्ण सत्कार का चिह्न मानते हैं । लेकिन जीवन में पान की खास जरूरत नहीं है । साधक को तो कदम-कदम पर सजग रहना चाहिए । कोई पीछे पड़ जाय, तो भी अपना व्रत छोड़ना नहीं चाहिए । ऐसी छोटी-छोटी बातों में भी दृढ़ न रहने से आगे जाकर वह व्यसन ही बन जाता है और फिर बडी़ बातों में भी फिसलने का भय रहता है ।’’

गांधीजी अपने निकटवर्ती लोगों के जीवन को कितनी मेहनत से आकार देते थे !