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खण्ड 4 :
सत्याग्रही

44. गुण-दर्शन का नमूना

बापूजी सफाई के परम भक्त थे । सफाई परमेश्वर का रूप है । हमारे देश को अभी यह सीखना बाकी है कि सफाई ईश्वर है । घर में तो हम सफाई रखते हैं । लेकिन सार्वजनिक सफाई का हमें अभी मान नहीं है। गांधीजी का सारा जीवन ही अन्तर्बाह्म शुचिर्भूत और निर्मल था । उनका वह छोटा-सा पंछिया था, फिर भी वह कितना साफ रहता था ।

उन दिनों गांधीजी यरवदा-जेल में थे । उन्होंने अपने लिए खास काम माँग रखा था । वे कपडे़ सीते थे । गांधीजी तो महान् कर्मयोगी थे। एक दिन जेल के प्रमुख अधिकारी उनके पास गये । गांधीजी जहाँ बैठकर सूत कातते थे, वहाँ तक वे सज्जन जूता पहनकर चले गये । गांधीजी से कुशल-क्षेम पूछी । बापू ने भी प्रसन्न मुख से उत्तर दिया । कुछ देर में वे अधिकारी चले गये । तब गांधीजी उठे और बाल्टीभर पानी लाये । सुपरिण्टेण्डेण्ट जहाँ तक जूता पहनकर आया था, वहाँ तक सारा धोया, लिपाई की, साफ कर दिया ।

किसीने पूछाः ‘‘बापू, यह क्या कर रहे हैं ?’’

‘यह मेरे उठने-बैठने का स्थान है। क्या उसे साफ न रखूँ ?’

‘किसने गन्दा किया ?’’

‘‘सुपरिण्टेण्डेण्ट आये थे । आज वे बोलते-बोलते यहाँ तक आये । जूते पहने यहाँ तक चले आये । इसलिए साफ कर रहा हूँ ।’’

‘‘आपने उनसे क्यों नहीं कहा ? यहाँ एक पटिया लगा दीजिये कि जूते बाहर ही उतारकर आयें ।’’

‘‘नहीं, यह तो हरएक के समझने की बात है । जाने दो । बहुत दिनों के बाद आज लिपाई का । ऐसा अवसर मुझे कौन देगा ? सुपरिण्टेण्डेण्ट के प्रती आभार मानना चाहिए कि उन्होंने मुझे ऐसे सत्कार्य का अवसर दिया, मेरे होथों सफाई की सेवा हुई ।’’

यह कहकर बापू हँसते-हँसते हाथ धोने लगे ।