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खण्ड 4 :
सत्याग्रही

40. बुद्ध का अवतार

हमारा देश एक बडा़ अजायबघर है । यहाँ संस्कृति की प्रत्येक श्रेणी के नमूने दिखाई देते हैं । जिस गाँव में ज्ञानस्वरूप परमात्मा की उपासना करनेवाला संन्यासी होगा, उसी गाँव में मुर्गी और बकरी की बलि चढा़नेवाले लोग भी मिलेंगे । गाँव में माता निकली तो वे बकरी का जुलूस निकालकर उसे जिन्दा ही गाड़ देते हैं । इस तरह बकरी को गाड़ने से कहीं हैजा दूर होगा ? माता तो स्वच्छता रखने से दूर होती है । हमलोग अज्ञान और रूढ़ियों के शिकार हैं ।

चम्पारन की बात है । एक दिन शाम को एक जुलूस निकल रहा था। हो-हल्ला हो रहा था । गांधीजी ने साथी कार्यकर्ता से पूछाः ‘‘यह आवाज काहे की है ? जुलूस कैसा ?’’ वह बोल नहीं पा रहा था। वह बलि चढ़ाने के लिए बकरी का जुलूस निकला था । महात्माजी उठे । जुलूस में शामिल हो गये। माला पहनायी गयी । बकरी के साथ चलने लगे । जुलूस देवी के मन्दिर के पास आया। महात्माजी उस बकरी के साथ थे । उन्होंने पूछाः

‘‘बकरी किसलिए बलि चढा़यी जा रही है ?’’

‘‘इसलिए कि देवी प्रसन्न हो ।’’

‘‘बकरी से आदमी श्रेष्ठ है । मनुष्य की बलि देने से देवी अधिक प्रसन्न होगी। देखो, क्या ऐसा कोई आदमी तैयार है ? नहीं तो मै तैयार हूँ ।’’

किसीसे बोल निकल नहीं रहे थे । सब गूँगे हो गये थे । बापू बोलेः ‘‘गूँगे जानवर के खून से क्या देवी प्रसन्न होती है? यदि वह प्रसन्न होती हो तो अपना अधिक मूल्यवान् रक्त दो । वह क्यों नहीं देते ? यह तो धोका है, अधर्म है ।’’

आप हमें धर्म समझाइये ।’’

‘‘सत्य पर चलो । प्राणिमात्र पर प्रेम करो । वह बकरी छोड़ दो। आज यह जगदम्बा आप लोगों पर जितनी प्रसन्न हुई होगी, उतनी इससे पहले कभी न हुई होगी ।’’

सब लोग लौट गये । भगवान् बुद्ध ने 2600 वर्ष पहले एक यज्ञमण्डल में जो किया था, वही महात्माजी ने 1916-17 में किया । महात्माजी प्रेम की प्रतिमूर्ति थे ।