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खण्ड 4 :
सत्याग्रही

39. सफाईः ज्ञान का पहला पाठ

गांधीजी अफ्रीका के सत्याग्रह में सफलता प्राप्त कर हिन्दुस्तान लौट आये थे । अपने गुरू श्री गोखले के कथानानुसार वे समुचे देश में घूम रहे थे । युक्तप्रान्त (उत्तर प्रदेश) में घूमते समय बिहार के कुछ लोग उनसे मिले । बिहार के चम्पारन में गोरे जमींदारों ने भारी जुल्म मचा रखा था । बिहार के शिष्ट-मण्डल के लोगों ने कहाः

‘‘गांधीजी, आप आइये, हमें रास्ता दिखाइये ।’’

गांधीजी बोलेः ‘‘मैं जरूर आऊँगा । लेकिन आप लोगों को मेरी बात माननी होगी ।’’

उन्होनें स्वीकार कियाः ‘‘जैसा आप कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे ।’’

‘‘जेल जाने की तैयारी रखेंगे ।’’

‘‘जी, हाँ ।’’

बात तय हो गयी और कुछ दिनों बाद चम्पारन के सत्याग्रह के लिए वे दौड़ पडे़ । श्री राजेन्द्रबाबू वगैरह बिहार के सत्याग्रही लोग उसी समय पहले-पहले गांधीजी से मिले । किसानों का काम तो शुरू हुआ, लेकिन गांधीजी को सारी जनता के अन्दर चेतना जगानी थी । कई साथी स्वयंसेवकों से उन्होंने कहा कि ‘‘आप लोग देहातों में जाँय और किसानों के बच्चों के लिए स्कूल चलायें ।’’ कस्तूरबा भी चम्पारन गयी थीं । एक दिन गांधीजी ने उनसे कहाः ‘‘तुम क्यों कोई स्कूल नहीं शुरू करती ? किसानों के बच्चों के पास जाओ, उन्हें पढा़ओ ।’’

कस्तूरबा बोलीः मैं क्या सिखाऊँ ? उन्हें क्या मैं गुजराती सिखाऊँ ? अभी मुझे बिहार की हिन्दी आती भी तो नहीं ।’’

‘‘बात यह नहीं है । बच्चों का प्राथमिक शिक्षण तो सफाई का है । किसानों के बच्चों को इकट्ठा करो । उनके दाँत देखो। आँखे देखो । उन्हें नहलाओ । इस तरह उन्हें सफाई का पहला पाठ तो सिखा सकोगी । माँ के लिए यह सब करना कठिन थोडे़ ही है । यह करते-करते उनके साथ बातचीत करोगी, तो वे भी तुमसे बोलेंगे । उनकी भाषा तुम्हारी समझ में आने लगेगी और आगे जाकर तुम उन्हें ज्ञान भी दे सकोगी । लेकिन सफाई का पाठ तो कल से ही उन्हें देना शुरू करो ।’’

कस्तूरबा अगले दिन से वही करने लगीं, बालगोपालों की सेवा का असीम आनन्द लूटने लगीं ।

गांधीजी सफाई को ज्ञान का प्रारम्भ मानते थे ।