| | |

खण्ड 4 :
सत्याग्रही
 

35. बापू की उदारता

श्री घनश्यामदास बिड़ला और गांधीजी में बडा़ आत्मयीय सम्बन्ध था । बिड़लाजी ने ‘बापू’ नामक एक पुस्तक भी लिखी है । एक बार बिड़लाजी बिमार थे । बापू ने उन्हें लिखाः ‘‘सेवाग्राम आइये । इलाज करूँगा ।’’ राजेन्द्रबाबू, सरदार, नरेन्द्रदेव आदि न जाने कितने लोगों की सेवा उन्होंने सेवाग्राम में की और उनके इलाज का प्रबन्ध किया । सबके प्रति उनका समभाव था । बडे़ नेता हों, पूँजीपति हों, छोटा बच्चा हो और चाहे किसी पक्ष का हो । सबसे वे प्रेम करते थे । चाहे राजमहल हो, चाहे झोपडी़ सूर्य की किरणें सब जगह समान रूप से पहुँचती हैं ।

महात्माजी बिड़लाजी को बुलाते थे, लेकिन बिड़लाजी संकोच करते थे । सेवाग्राम में भंगी नहीं है । सारे आश्रम के ही लोग भंगी-काम करते हैं । और बिड़लाजी जहाँ रहनेवाले थे, उस जगह की सफाई और वहाँ के आरोग्य की जिम्मेदारी महादेवभाई पर आनेवाली थी । बिड़लाजी को भंगी-काम पसन्द नहीं था । और उनकी पखाना-सफाई महादेवभाई करें, यह बात उन्हें सहन नहीं होती थी । इसलिए वे आते नहीं थे  ।

लेकिन गांधीजी से उनका पाला पडा़ ।

बापू ने कहाः ‘‘आइये तो एक बार सेवाग्राम । आपको ठीक कर दूँगा । अपना इलाज शुरू करूँगा ।’’

बिड़लाजी ने अपनी अड़चन बतायी । महादेवभाई को हँसी आयी । गांधीजी भी हँसे । लेकिन गांधीजी किसी पर कोई बात लादते नहीं थे । दूसरों की भावना को पहचानते थे और उसकी कद्र करते थे। बापू ने कहाः ‘‘आप आइये, आपके लिए कुछ दिन तक भंगी रखा जायगा ।’’

तब बिड़लाजी आये। कुछ दिन के लिए एक विशेष भंगी का प्रबन्ध किया गया था । ऐसे थे सबको निभानेवाले बापू !