34. भूल का अनोखा प्रायश्चित |
नागपुर के आसपास अस्पृश्यता-निवारण-सम्बन्धी दौरा हो रहा था । एक दिन क्या हुआ ? महात्माजी का हाथ पोंछनेवाला रूमाल काम की भीड़ में कहीं पिछले पडा़व पर छूट गयाः शायद सूखने के लिए फैलाया था, वहीं रह गया। महात्माजी को रूमाल की जरूरत पडी़ । महादेवभाई से माँगा । उन्होंने कहाः ‘‘खोज लाता हूँ ।’’ महादेवभाई ने बहुत खोजा । रूमाल मिला नहीं । बापू से कैसे कहा जाय कि रूमाल खो गया ? आखिर महादेवभाई ने आकर कहाः ‘‘बापू, रूमाल पीछे छूट गया । शायद कहीं खो गया। मैं दूसरा ला देता हूँ ।’’ बापू कुछ देर तक बोले नहीं । फिर पूछाः ‘‘वह कितने दिन तक चलता ?’’ ‘‘चार महीने और चलता ।’’ ‘‘तो फिर मैं चार महिने बिना रूमाल के ही चलाऊँगा। भूल का यह प्रायश्चित है। बाद में दूसरा रूमाल लेंगे ।’’ महादेवभाई क्या बोलते ? |