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खण्ड 3 :
विनम्र सेवक   
 

32.कुर्ता क्यों नहीं पहनते ?

गांधीजी की हरएक बात हेतुपूर्वक होती थी । उनके कपडो़ का फर्क देखने लगें तो उनके जीवन की क्रान्ति समझ में आयेगी । जब वे बैरिस्टर थे, तब एकदम यूरोपियन पोशाक थी । बाद में वह गयी । अफ्रीका में सत्याग्रही पोशाक थी । भारत लौटे, तब काठियावाडी़ पगडी़, धोती पहनते थे। लेकिन जब देखा कि एक पगडी़ में कई टोपियाँ बन सकती है, तब टोपी पहनने लगे । इसी टोपी को हम गांधी टोपी कहते हैं । फिर कुर्ता और टोपी का भी त्याग किया, केवल एक पंछिया पहनकर ही वह महापुरूष रहने लगा । यह पंछिया पहनकर ही वे लन्दन में सम्राट पंचम जार्ज से मिलने राजमहल गये । इससे चर्चिल साहब नाराज हो गये । महात्माजी की आत्मा गरीब-से-गरीब लोगों से एकरूप होने के लिए छटपटाती रहती थी

एक बार गांधीजी एक स्कूल देखने गये । हँसी-मजाक चल रहा था । एक लड़का कुछ बोला । शिक्षक ने उसकी तरफ गुस्से से देखा । गांधीजी उस बच्चे के पास गये और बोलेः ‘‘तूने मुझे बुलाया ? क्या कहना है तुझे ? बोलो, डरो मत ।’’

‘‘आपने कुर्ता क्यों नहीं पहना ? मैं अपनी माँ से कहूँ क्या ? वह कुर्ता सी देगी । आप पहनेंगे न ? मेरी माँ के हाथ का कुर्ता आप पहनेंगे ?’’

‘‘जरूर पहनूँगा । लेकिन एक शर्त है बेटा ! मैं कोई अकेला नहीं हूँ ।’’

‘‘तब और कितने चाहिए ? माँ दो सौ देगी ।’’

‘‘बेटा, मेरे 40 करोड़ भाई-बहन हैं । 40 करोड़ लोगों के बदन पर कपडा़ आयेगा, तब मेरे लिए भी कुर्ता चलेगा । तुम्हारी माँ 40 करोड़ कुर्ते सी देगी ?’’

महात्माजी ने बच्चे की पीठ थपथपायी । वे चले गये । गुरूजी और छात्र अपनी आँखों के सामने राष्ट्र के दरिद्रनारायण को देखकर स्तम्भित हो गये । महात्माजी राष्ट्र के साथ एकरूप हुए थे । वे राष्ट्र की माता थे !