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खण्ड 3 :
विनम्र सेवक   
 

31.फिजूलखर्चो का भय

गांधीजी छोटी-से-छोटी बात का भी बहुत ध्यान रखते थे । उनका सत्य का प्रयोग हर जगह चलता था । गोलमेज-परिषद् के समय की बात है । भोजन के वक्त वे थोडा़-सा शहद लेते थे । उस दिन गांधीजी का जहाँ भोजन था, वहाँ मीराबहन हमेशा की शहद की बोतल साथ ले जाना भूल गयीं । खाने का समय होने लगा । मीराबहन को शहद की याद आयी । बोतल तो निवास पर छूट गयी । अब ? उन्होंने फौरन किसीको पास की दूकान तक दौडा़या और शहद की नयी बोतल मँगवा ली

गांधीजी भोजन करने बैठे । शहद परोसा गया । उनका ध्यान उस बोतल पर गया

उन्होंने पूछाः ‘‘बोतल नयी दीखती है । शहद की वह बोतल नहीं दिखाई देती ।’’

‘‘हाँ, बापू ! वह बोतल निवास पर छूट गयी । इसलिए यहाँ जल्दी में यह मँगा ली ।’’ मीराबहन ने डरते-डरते कहा

कुछ देर गम्भीर रहने के बाद गांधीजी ने कहाः ‘‘एक दिन शहद न मिला होता, तो मैं भूखा थोडे़ ही रह जाता । नयी बोतल क्यों मँगायी ? हम जनता के पैसे पर जीते हैं । जनता के पैसे की फिजूल खर्ची नहीं होनी चाहिए ।’’