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खण्ड 3 :
विनम्र सेवक   
 

28. दरिद्रनारायण का उपासक

अदन की बात है । गांधीजी ने यहीं से अपने साथ का बहुत-सा  सामान भारत लौटा दिया था । बम्बई से जहाज के खुलते ही गांधीजी सामान देखने लगे । कितना सारा सामान था !

बापू ने पूछाः ‘‘महादेव, इन बक्सों में क्या है ? इतना सामान क्यों जमा हो गया ?’’

‘‘विलायत में ठण्ड अधिक है । इसलिए कईयों ने कपडे़ दिये है । कम्बल हैं, गरम कपडे़ हैं । ‘ना’ कैसे कहा जाय ? यह एक कश्मीरी शाल है ।’’ महादेवभाई बडी़ आजिजी से कहने लगे

‘हम’ इतने सारे कपडे़ लेकर कैसे जाँय ? हम दरिद्रनारायण के प्रतिनिधि रूप में जा रहे हैं न ? ये कपडे़-लत्ते देफकर हमें कौन गरीब कहेगा ? मुझे तो कपडो़ की आवश्यकता नहीं है । बहुत ठण्ड लगती हो तो कम्बल काफी है । तुम्हें जो बहुत जरूरी हो, वही रखो । बाकी सब लौटा दो । अब अदन आयेगा ।’’

महादेवभाई ने अदन में वह सारा बोझ उतार दिया । वहाँ के मित्रों से कहैः ‘यह भारत लौटा देना ।’’ कमर पर पंछिया पहनकर दरिद्रनारायण का प्रतिनिधि उस साम्राज्य की राजधानी के लिए रवाना हुआ, जहाँ सूर्य कभी अस्त न होता था