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खण्ड 3 :
विनम्र सेवक   
 

27. बापू धोबी बने

दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह चल रहा था । सैकडो़ सत्याग्रही जेल में थे । उनके परिवार की व्यवस्था टाँल्सटाँय फार्म में की गयी थी । कई बहने अपने बाल-बच्चों को लेकर वहाँ रहती थीं । गांधीजी को जब भी फुरसत मिलती, इन बहनों को सान्त्वना दिया करते थे । उनका काम भी कर देते थे

एक दिन गांधीजी कपडा़ धोने निकलें । अलग-अलग बहनों के पास गये और बोलेः ‘‘धोने के कपडे़ दो बहन ! मैं धोकर ला दूँगा। नदी जरा दूर है । आपके बच्चे छोटे हैं । टट्टी-पेशाब से सने सारे कपडे़ दे दो । दूसरे भी दो । शरमाओ नहीं । तुम्हारे पति वहाँ सत्य के लिए जेल में तपस्या कर रहे हैं । तुम्हारी फिक्र हमें करनी चाहिए । लाओ। सचमुच दो ।’’

संकोचशील माँ-बहनें ये शब्द सुनकर कपडे़ निकालकर देती थीं । उन कपडो़ की काफी मोटी गठरी बाँधकर, पीठ पर लादकर वह राष्ट्रपिता नदी ले जाता था । वहाँ सारे कपडे़ ढंग से धोकर, धूप में सुखाकर, तह करके ला देते थे । ऐसे थे बापू! उनकी सेवा की सीमा नहीं थी