25. करूणामूर्ति |
महात्माजी को हम अकसर भगवान् बुद्ध अथवा भगवान् ईसा को उपमा दिया करते हैं । भगवान् बुद्ध की तरह गांधीजी ने भी ‘मुझे बलि चढा़ओ’ कहा । ईसामसीह सभी तरह के दलित और पतित लोगों की सेवा करते थे । महारोगियों की सेवा करते थे । गांधी ऐसे ही सेवामूर्ती थे ।
चम्पारन
का ही करूण गम्भीर प्रसंग है । किसानों का सत्याग्रह चल रहा था ।
महात्माजी के सत्याग्रह में सभी भाग ले सकते थे । सैनिक युद्ध में
बन्दुक चला सकनेवाले ही काम आते हैं । लेकिन जिस प्रकार छोटे से लेकर
बडे़ तक सब राम-नाम लेते हैं, उसी प्रकार सब अपने-अपने आत्मा के बल पर
इसमें भाग ले सकते हैं । सत्याग्रह में तमाम लोग शामिल हो सकते हैं ।
चम्पारन की उस सत्याग्रही सेना में कुष्ठ-रोग से पीड़ित एक खेतिहर
मजदूर था । वह पैरों में चिथडा़ लपेटकर चलता था । उसके घाव खुल गये थे
। पैर खूब सूजे हुए थे । असह्म वेदना हो रही थी लेकिन आत्मिक शक्ति के
बल पर वह महारोगी योद्धा सत्याग्रही बना था ।
आश्रम पहुँचने पर प्रार्थना का समय हुआ । बापू के चारों ओर सत्याग्रही बैठे । लेकिन बापूजी को वह महारोगी दिखाई नहीं पडा़ । उन्होंने पूछताछ की । अन्त में किसी ने कहाः ‘‘वह जल्दी चल नहीं सकता था । थक जाने से वह पेड़ के नीचे बैठा था ।’’ गांधीजी एक शब्द भी न बोलकर उठे । हाथ में बत्ती लेकर उसे खोजने बाहर निकल पडे़ । वह महारोगी राम-नाम लेते हुए एक पेड़ के नीचे परेशान बैठा था । बापू के हाथ की बत्ती दीखते ही उसके चेहरे पर आशा फूट पडी़ । भरे गले से उसने पुकाराः ‘बापू ।’ गांधीजी कहने लगेः ‘‘अरे, तुमसे चला नहीं गया, तो मुझसे कहना नहीं चाहिए था ?’’ उसके खून से सने पैरों की ओर उनका ध्यान गया । वह महारोगी था । दूसरे सत्याग्रही घृणा से पीछे हट गये । लेकिन गांधीजी ने चादर फाड़कर उसके पैर को लपेट दिया । उसे सहारा देकर धीरे-धीरे आश्रम में उसके कमरे में ले आये । बाद में उसके पैर ठीक तरह से धोये । प्रेम से उसे अपने पास बैठाया । भजन शुरू हुआ । प्रार्थना हुई । वह महारोगी भी भक्ति और प्रेम से ताली बजा रहा था । उसकी आँखे डबडबा रही थीं । उस दिन की प्रार्थना कितनी गम्भीर और कितनी भावपूर्ण रही होगी । ऐसे थे हमारे बापू । |