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खण्ड 3 :
विनम्र सेवक   
 

23. देह समाज की धरोहर है

बच्चों, बापूजी बडे़ निर्भय थे । उन्होंने प्रचण्ड हिंसा का सामना आत्मबल से किया । उन्हें मृत्यु का भय नहीं था । उनके जैसी निर्भयता तथा वीरता और किसमें हो सकती है ? मृत्यु तो उनका सन्मित्र ही था ।

लेकिन महात्माजी अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखते थे । वे शरीर की उपेक्षा को पाप मानते थे । यह शरीर समाज की सम्पत्ति है, समाज की धरोहर है । उनका दुरूपयोग करने का मुझे कोई अधिकार नहीं है यह उनकी भावना थी ।

एक बार बापू घूमने निकले । रास्ते में उनके पैर में ठोकर लगी अँगूठे से खून बहने लगा । पास ही कस्तूरबा थीं । गांधीजी बोलेः ‘बा’ जल्दी पट्टी लाओ, मेरे अँगूठे में बाँधो ।’’

कस्तूरबा ने विनोद में कहाः ‘‘आप तो कहते हैं कि आपको मृत्यु का भय नहीं है और आपको किसी बात का दुःख नहीं है । तब जरा-सा ठोकर लगा और थोडा़ खून बह गया तो इतना घबराने की क्या बात है ?’’

बापू गम्भीरता से बोलेः ‘बा’, यह शरीर जनता की सम्पत्ति है । मेरी असावधानी से इस अँगूठे में पानी लग जाय, वह पक जाये और 7-8 दिन मुझसे कोई काम न हो पाये, तो उससे लोगों का कितना नुकसान होगा । उससे लोगों का मुझ पर जो विश्वास है, वह खण्डित होगा ।’’
      बा शरमा गयीं । जल्दी पट्टी लाकर बापू के अँगूठे में बाँध दी ।  
      बापू के मन में राष्ट्र-हित की कितनी चिन्ता थी ।