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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

19. नव-जीवन का सन्देश

गांधीजी आंध्र प्रदेश में प्रवास कर रहे थे । आन्ध्र मलमल जैसी खादी के लिए प्रसिद्ध है । चिकाकोल गाँव में खादी की प्रदर्शनी थी । गांधीजी को वहाँ जाना था । वह देखो, आन्ध्र की बहनें तरखा कात रही हैं । पास ही पूनी रखी है । एक-एक पूनी से तीन-तीन सौ तार सूत निकल रहा है । 50-60 नम्बर का सूत है । अपने ही हाथ के सूत का वस्त्र उन बहनों ने पहना था । दूध की धार के समान सूत निकल रहा था । वह अदभुत दृश्य देखकर गांधीजी का हृदय उमड़ आया और वे भी चरखा लेकर कातने लगे ।

एक के पीछे एक बहन आती और गांधीजी के चरणों के पास साफ सूत की गुण्डी भेटस्वरूप रखकर प्रणाम करके चली जाती । लेकिन ये कौन दो बहनें ? ये दुखी हैं । चेहरे पर दैन्य, दुःख और लज्जा के कई भाव हैं । बापू को प्रणाम कर वे बोलीः

‘‘हम नीच जाति में पैदा हुई हैं । पशु-पक्षियों से भी हमें हीन समझा जाता हैं । हम आज से खादी पहनने का व्रत ले रही हैं ।’’

गांधीजी ने गम्भीर वाणी में आश्वासन देते हुए कहाः ‘‘जन्म से ही कोई पापी नहीं होता । आप सूत कातिये । ईमानदारी से मेहनत करके गुजारा चलाइये । सदाचारी रहिये। तो आप उत्तम मनुष्य होंगे ।’’

बापूजी की वाणी गदगद् थी । उन दोनों बहनों का मुखकमल आशा से प्रफुल्ल था, मानो नवजीवन मिला हो, नवजीवन प्रारम्भ हुआ हो ।