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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

16.एक राष्ट्र का प्रतिनिधि

सन् 1931 में दिल्ली में गांधी-इरविन समझौता हुआ। सत्याग्रह की विजय हुई थी । यह पहला समझौता है, जो ब्रिटिश सरकार ने हिन्दुस्तान से खुद होकर किया था । गांधीजी गोलमेज परिषद् के लिए लन्दन जाने को राजी हो गये और निकले। वह देखो, बम्बई से जहाज खुल रहा है । चलते-चलते गांधीजी एक छोटे बच्चे का चुम्बन ले रहे हैं ।

फोटोग्राफर फोटो ले रहे हैं । खुल गया जहाज ।

आज जहाज अदन पहुँचनेवाला था । अदन की भारतीय तथा अरबी जनता की ओर से गांधीजी को मानपत्र दिया जानेवाला था । लेकिन उस समारोह के समय तिरंगा झण्डा फहराने की अनुमती वहाँ का पोलिटिकल रेजिडेंट दे नहीं रहा था ।

गांधीजी ने स्वागत-समिति के अध्यक्ष से कहाः ‘‘रेजिडेंट को फोन करके कहिये कि हिन्दुस्तान सरकार के साथ कांग्रेस का समझौता हुआ है । ऐसी स्थिति में आपको राष्ट्रध्वज के लिए इनकार नहीं करना चाहिए । लेकिन यदि आप अनुमति नहीं देते है, तो मैं मान-पत्र नहीं लूँगा ।’’

फोन किया गया । पोलिटिकल रेजिडेंट ने नाजुक परिस्थिति पहचान ली और अनुमति दे दी । तिरंगा झण्डा अदन में फहराया गया । लाल सागर और अरब सागर ने वह देखा ।

गांधीजी ने मान-पत्र का उत्तर देते हुए कहाः ‘‘जिस राष्ट्रध्वज के लिए हजारों लडे़, मरे, वह ध्वज राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के स्वागत में न हो तो कैसे चलेगा । राष्ट्रीय ध्वज के लिए अनुमती देने का यह प्रश्न नहीं है । जहाँ राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि को बुलाया गया हो, वहाँ उसके ध्वज को भी सम्मान्य स्थान मिलना ही चाहिए ।’’

तब वहाँ के भारतीयों और अरब नागरिकों को कितना आन्नद हुआ । उस जहाज के सैकडो़ गोरे लोग वह प्रसंग देख रहे थे ।