| | |



खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

15.पहरेवाला भी रो पडा़

मार्च 1922 में गांधीजी को सजा हुई । बारडोली का सत्याग्रह स्थगित करने के बाद उन्हें गिरफ्तार करने की जरूरत नहीं थी । लेकिन आन्दोलन रोक देने के कारण गांधीजी के प्रति जनता और राष्ट्र के नेता क्षुब्ध है, यह देखकर उस तेजोमय सूर्य को जेल में ठूँसने का ही सरकार ने निश्चय किया । गांधीजी ने अपराध स्वीकार किया। उन्होंने कहाः ‘‘इस शासन के विरूद्ध असन्तोष पैदा करना मेरा धर्म है ।’’ पहले लोकमान्य को छह वर्ष की सजा दी गयी थी, उसी उदाहरण को सामने रखकर न्यायाधीशों ने गांधीजी को भी छह वर्ष की सजा सुनायी । छह साल तक राष्ट्रपिता दीखनेवाले नहीं थे । महादेवभाई रोने लगे । मुकदमे के समय तात्यासाहब केलकर खास तौर पर इसलिए अहमदाबाद गये थे । वे महादेवभाई को धीरज बँधा रहे थे । लोकमान्य को सजा सुनायी गयी थी, तब हम भी ऐसे ही रोये थे’ – कहकर महादेवभाई को सान्त्वना देते थे । वह प्रसंग बडा़ गम्भीर और हृदयद्रावक था ।

लेकिन बंगाल के उस गाँव के एक मकान में वह संतरी भला क्यों रो रहा है ? उस मकान में एक बडा़ क्रांतिकारी रहता था। मेरा खयाल है, वह उल्लासकर दत्त ही थे । वे जेल छूटे थे । उन्हें जरा मतिभ्रम सा हुआ था, इसलिए सरकार ने उन्हें छोड़ दिया था । वे उस मकान में रहते थे । उनकी स्मरण-शक्ती फिर सतेज हो रही थी । पागलपन मिट रहा था ।

वह पहरेदार रो रहा था। उसके हाथ में एक बंगाली अखबार था। उस क्रांतिकारी ने उससे पूछाः ‘‘क्यों रोते हो ?’’

उसने कहाः ‘‘मेरी जाति के एक आदमी को छह वर्ष की सजा हुई है । वह बूढा़ है। 54-55 वर्ष की उसकी उम्र है । देखो, इस अखबार में है ।’’

अखबार में गांधीजी के उस ऐतिहासिक मुकदमे की तफसील थी । गांधीजी ने अपनी जाति किसान बतायी थी और धन्धा कपडे़ की बुनाई लिखाया था । वह पहरेवाजा मुसलमान था । वह बुनकर जाति का था । यह पढ़कर उसकी आँखे भर आयी थीं ।
      उस महान क्रान्तिकारी की समझ में सारी बातें आयी । वह अपने संस्मरण में लिखते हैः ‘‘हम कैसे क्रान्तिकारी हैं ? सच्चे क्रान्तिकारी तो गांधीजी है । सारे राष्ट्र के साथ वे एकरूप हुए थे । मैं किसान हूँ, मैं बुनकर हूँ – यह उनका शब्द राष्ट्रभर में पहुँच गया होगा । करोडो़ लोगों को यही लगा होगा कि हममें से ही कोई जेल गया । जनता से जो एकरूप हुआ, जनता से जिनके सम्पर्क जोडा़, वही विदेशियों के बन्धन से देश को मुक्त कर सकता है । उस सच्चे महान् क्रान्तिकारी को प्रणाम ।’’