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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

13. प्रेम का उपहार

उन दिनों गांधीजी इंग्लैंड में थे । यह सन् 1931 की बात है। गांधीजी की सुरक्षा के लिए, या कहें उन पर निगरानी रखने के लिए, उनके साथ हमेशा खुफिया पुलिस का एक आदमी रहता था । गांधीजी का सारा व्यवहार खुला होता था । उसमें किसी तरह का लुकाव-छिपाव नहीं रहता था । सत्य तो सूर्य के प्रकाश के समान होता है । वह अन्धकार में कहीं छिपकर बैठ नहीं सकता । सत्य निर्भय होता है । उसे छिपने की इच्छा भी नहीं होती ।

वह खुफिया पुलिस का आदमी वहाँ ऊब गया । क्योंकि वहाँ उसे कुछ भी काम नहीं था । गांधीजी के काम में वह भी हाथ बँटाने लगा । कभी सामान सजाता, तो कभी कुछ करता । श्री प्यारेलालजी से और श्री मीराबहन से वह कहता कि ‘‘मुझे भी कुछ काम दीजिये, संकोच करने की कोई बात नहीं ।’’ वह गोरा पुलिसवाला इस बात के लिए उत्सुक था कि बापू का कुछ तो काम करने का अवसर मिले । जब कोई काम मिलता, तो वह खुशी से फूल उठता था और उस काम से अपने को धन्य मानता था । गांधीजी का लन्दन का काम खत्म हुआ । वे गोलमेज परिषद् के लिए गये हुए थे । भारत की समस्या हल करने गये थे । लेकिन अभी स्वतंत्रता की घडी़ नहीं आयी थी । ब्रिटिशों की कारस्तानी और भारतीय नेताओं के मतभेद, यह सारा देखकर गांधीजी बहुत खिन्न हुए । सबसे बिदा लेकर वे हिन्दुस्तान लौटने के लिए निकले । कीलाहल शुरू हो गया। छोटे-छोटे अंग्रेज बच्चे गांधीजी के चारों ओर उमड़ने लगे ।

इतने में एक बडा़ अफसर आया । गांधीजी से पूछाः ‘‘आपके लिए और किसी बात की जरूरत तो नहीं हैं ? सारी सुविधा है न ? कोई तकलीफ तो नहीं है ?’’

‘‘सब ठीक है । और कुछ नहीं चाहिए । पर मुझे सिर्फ एक चीज माँगनी है ।’’

‘‘क्या है ? बताइये। संकोच न कीजिये ।’’

‘‘यह जो खुफिया पुलिस का आदमी है, उसे ब्रिन्दिसी तक मेरे साथ चलने दें । भेज सकेंगे न ? ‘ना’ नहीं कीजियेगा।’’

‘‘किसलिए ?’’

‘‘इसलिए कि वह अब मेरे ही परिवार का आदमी हो गया है । वहाँ तक साथ जाने दीजिये ।’’

‘‘तो फिर ले जाइये ।’’

वह गोरा पुलिसवाला बहुत खुश हुआ । ब्रिन्दिसी तक वह महात्माजी के साथ गया । वहाँ उसने प्रणाम किया । गांधीजी ने उसका पता अपने पास लिख लिया ।

फिर गांधीजी भारत आये। देश में जनता भड़की हुई थी । गांधीजी ने वाइसराय से मिलने के लिए दो तार किये । लाटसाहब ने मिलने से इनकार कर दिया । फिर सत्याग्रह शुरू हुआ । गांधीजी को यरवदा-जेल में रखा गया ।

राष्ट्र का सारा भार ढोनेवाले वे महापुरूष । लेकिन उस गोरे खुफिया पुलिसवाले को वे भूले नहीं थे । उन्होंने उसे एक घडी़ उपहार में भेजी । उस पर ‘सप्रेम भेट’ खुदवा दिया, अपना नाम भी खुदवा दिया था ।
      वह प्रेमभरी भेट पाकर न जाने वह पुलिसवाला कितना खुश हुआ होगा ।