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खण्ड 1 :
बच्चों के बापू
 

4.महापुरूष की महानता

सन् 1930 के प्रचण्ड दिन थे । अभी सत्याग्रह शुरू नहीं हुआ था । अभी वह महान् दांडी-कूच शुरू नहीं हुआ था । देश में सब जगह कुतूहल से भरा हुआ वातावरण था । 26 जनवरी को पहला स्वतन्त्र्य-दिवस मनाया गया था । जनता का सारा ध्यान इस ओर था कि गांधीजी क्या आदेश देते हैं, किस तरह का सत्याग्रह करने को कहते हैं । जगह-जगह शिविर हो रहे थे । स्वयंसेवक आने लगे थे । गांधीजी ने कहाः ‘‘नमक का सत्याग्रह हो, लेकिन मेरे कहे बगैर नहीं करना है । पहले मैं दांडी जाऊँगा, वहाँ सत्याग्रह करूँगा, फिर सब जगह करना ।’’

महात्माजी एक महत्त्वपूर्ण पत्र लिख रहे हैं । ऐतिहासिक पत्र, देश का भविष्य निश्चित करनेवाला पत्र लिख रहे हैं । वह किसे लिख रहे हैं ? क्या दिल्ली के लाटसाहब को, वाइसराय साहब को ?

पत्र पूरा हुआ । लगे हाथ दूसरा एक पत्र उन्होंने लिखने के लिए लिया । यह किसे लिखना है ? क्या इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री को ? अमेरीका के अध्यक्ष को ? किसको लिखा जा रहा है यह पत्र ? क्या उस समय के कांग्रेस-अध्यक्ष को ? पण्डित जवाहरलाल नेहरू को ? या रवीन्द्रनाथ ठाकुर को, जो हाल ही में आश्रम आकर यह पूछकर गये थे कि सत्याग्रह का मार्ग मिला ? किसे लिख रहे थे ?

वह पत्र था एक हरिजन बालिका के नाम । वह वहाँ से 500 मील दूर रहती थी । उसे वह प्रेमल पत्र लिखा जा रहा था ।

उस पत्र में राष्ट्रपिता उस बच्ची को वात्सल्यपूर्ण सूचना दे रहे थे - ‘‘तेरी अँगुली दुख रही है। लेकिन उसमें आयोडीन लगा रही है न ? लगाती रहना।’’ एक ओर आँखों के सामने राष्ट्रव्यापी आन्दोलन और दूसरी ओर दूर की उस बच्ची को प्यारभरा पत्र। महापुरूष के लिए सब समान है ।