खण्ड 1 : बच्चों के बापू
3. ‘गांधीजी पागल है’ |
आज एक छोटे बच्चे की ही कहानी सुनाता हूँ । क्योंकि छोटे बच्चे यानी ईश्वर का रूप । उनका मन निर्मल और हृदय पवित्र होता है बापू को छोटे बच्चे बहुत प्रिय थे । एक बार बापूजी भोजन कर रहे थे । वे तो हिसाब से खाते थे । भोजन में पाँच चीजों से ज्यादा नहीं लेते थे । उन दिन किसीने अंगूर आदि का उपहार ला दिया था । उपहार में आये फल सबके बीच बाँट दिये जाते थे । सेवाग्राम में बापू रहते, तब उपहार के फल पहले बीमारों को मिलते थे । गांधीजी खाना खा रहे थे । फल खा रहे थे । इतने में कुछ लोग मिलने आये । वह एक प्रेमल परिवार था । माता, पिता, छोटा बच्चा, सब थे । गांधीजी को प्रणाम कर सब बैठ गये । छोटे बच्चे ने बापूजी की ओर देखा । माँ से कुछ कहने लगा । माँ उसे चुप कर रही थी । वह बच्चा कह रहा थाः ‘‘गांधीजी पागल हैं ।’’ माँ गुस्से से बोलीः ‘‘ऐसा नहीं बोलते. चुप ।’’ उसने फिर कहाः ‘‘हाँ, पागल ही है ।’’ माँ गुस्से से डाँट रही थीः ‘‘दो थप्पड़ लगाऊँगी ।’’ गांधीजी का ध्यान उधर गया । अपने ऐनक के अन्दर से हँसते हुए देखा । पूछाः ‘‘क्या कहता है यह ? क्यों रे मुन्ने?’’ उसने कहाः ‘‘आप पागल हैं ।’’ माता, पिता का और दूसरों का मुँह सूखने लगा । लेकिन वह राष्ट्रपिता जोर से हँस पडा़ । बापू ने हँसते-हँसते पूछा । ‘‘मैं क्योंकर पागल हूँ ? बताओ तो ’’ ‘‘आप अकेले-अकेले खाते हैं । किसीको नहीं देते । माँ ने एक बार मुझसे कहा था, ‘तू अकेला खाता है, कैसा पागल है । दे उस लड़के को भी । और आप तो अकेले ही खा रहे हैं, इसलिए पागल हैं ।’’ ‘‘हाँ, यह सच है । ले, तू भी यह फल ले । अब तो मैं सयाना हूँ न । ‘‘जाओ, मुझे नहीं चाहिए ।’’ ‘‘क्यों भला ।’’ ‘‘माँ कहती है, दूसरों का दिया नहीं लेना चाहिए ।’’ ‘‘अरे, फौरन नहीं लेना चाहिए । लेकिन आग्रह करें तो लेना चाहिए । ले ।’’ माता, पिता के कहने पर उसने फल ले लिये । सब हँसने लगे । है न मजेदार कहानी ? |