उन
दिनों बापू की यात्रा नोआखाली में चल रही थी। वहाँ की जनता के आँसू
पोंछने और ढाढ़स बँधाने के लिए गांधीजी वहाँ गये थे । हर जगह भय का
वातावरण छाया था । हिन्दू घर से बाहर नहीं थे । घर-बार जलकर खाक हो गये
थे। काफी लोग मारे गये थे । धर्म के नाम पर अधर्म का काम हो रहा था ।
उस अन्धकार में प्रकाश दिखाने, उस भय में अभय देने राष्ट्रपिता निकला ।
गांधीजी ने जी-तोड़ कोशिश की, लेकिन लोग बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर
पाते थे । गांधीजी को थोडी़ देर के लिए निराशा हुई ।
एक दिन
उनके साथियों ने एक उपाय निकाला । वे गेंद वगैरह का खेल सड़क पर खेलने
लगे । घरों से बच्चे झाककर देखते थे ।
‘आओ बच्चों, खेल खेलने आओ । बापू के साथ खेलने आओ । इस तरह बापूजी
के साथी कहने लगे और वे बच्चे आने लगे । खेल बच्चों की आत्मा होती है ।
वे खेल में रमने लगे। भागने-दौड़ने लगे । हँसने-खेलने लगे ।
फिर एक दिन वहाँ तिरंगा झण्डा फहराया गया ।
बापू के साथी बोलेः ‘‘आओ, झण्डे का गीत गायें ।’’
फिर ‘झण्डा ऊचाँ रहे हमारा’ गाया गया ।
‘‘अब ‘रघुपति राघव राजाराम’ गाते चलो हमारे साथ। चलोगे न ?’’
‘‘जी हाँ, चलिये ’’
जुलूस निकला । बच्चे ‘रघुपति राघव राजाराम’ गाते हुए आगे बढ़ते
गये । बच्चों के पीछे घरों से झाँकनेवाले माता-पिता भी बाहर निकले ।
धर्मान्ध मुसलमान कहने लगे । ‘‘देखेंगे ये लोग कैसे राम-नाम लेते
हैं?’’ लेकिन वह बालकों का जुलूस, राम की वानर-सेना का जुलूस देखकर
मुसलमान दंग रह गये । जयघोष करते हुए आगे बढ़नेवाले उस जुलूस की ओर
देखते ही रह गये । मारने के लिए हाथ ऊपर उठे नहीं । क्या उनका भी हृदय
उछलने लगा होगा ? बाल-बच्चों को अपार प्रेम करनेवाले पैगम्बर मुहम्मद
क्या उनके हृदय में भीजग पडे़ ?
उस दिन कभी न निकलनेवाले आँसू गांधीजी के नयनों से निकल पडे़।
उन्होंने कहाः ‘‘आज अन्धकार में प्रकाश दिखा। मुझे आशा मिली । निष्पाप
बालकों की श्रद्धा का यह बल है ।’’
विनोबाजी ‘बाल’ शब्द की यह जो व्याख्या करते हैं कि जिसमें बल
है, वह ‘बाल’। यह यों ही नहीं है । प्रहृलाद, ध्रुव, चिलया, रोहिदास
इत्यादि भारतीय बालकों की कितनी महिमा है । |