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खण्ड 1 :
बच्चों के बापू
 

1. प्यारे बापू

छोटा बालक आनन्दस्वरूप है, संसार की आशा है, निर्मलता है, उत्साह है । मुक्त पुरूषों में एक प्रकार की बाल-वृत्ति होती है । महात्मा गांधी बालकों की तरह निष्पाप थे । इसलिए बापू की मीठी बातों का प्रारम्भ बालकों की कहानी से ही करनेवाला हूँ ।

महात्माजी को बच्चे बहुत प्यारे थे । संसार के सभी धर्मात्मा ऐसे ही हैं। उन्हें बालकों पर बहुत प्रेम होता है । पैगम्बर मुहम्मद को रास्ते में बालक घेर लेते थे। उन्हें एक ओर खींच ले जाते और कहतेः ‘‘कहानी सुनओ ।’’ ईसामसीह भी बच्चों के बडे़ प्यारे थे । और हमारे भगवान् गोपाल-कृष्ण. वे तो गोपाल-बालकों में खेला ही करते थे । महात्माजी भी बालकों के पीछे पागल थे । घूमने-टहलने जाते तो बच्चों को साथ ले जाते । जूहू (बम्बई) के समुद्र-किनारे बच्चों की लाठी पकड़कर हँसते हुए महात्माजी का चित्र तुमने देखा ही होगा । लेकिन आज जो कहानी सुनानेवाला हूँ, वह साबरमती-आश्रम की है ।

रोज की तरह गांधीजी आश्रम से घूमने निकले । आश्रम के बच्चे भी निकले। हँसते-बोलते टहलना शुरू हुआ । टहलते समय बापूजी के साथ प्रश्नोत्तर चलता ही रहता था ।

‘‘बापू, आपसे एक बात पूछूँ ?’’ एक बच्चे ने प्रश्न किया ।

‘‘हाँ-हाँ, पूछो ।’’

‘‘अहिंसा का मतलब यही न कि दूसरे को दुःख न दें ‘’

‘‘बिलकुल ठीक.’’

‘‘आप हँसते-हँसते हमारा गाल चुटकी में पकड़ते हैं, यब हिंसा है कि अहिंसा’’

‘‘शैतान कहीं का’’ कहकर खिलखिलाकर हँसते हुए बापू ने उसके गाल की जोर से चिकोटी काटी । बच्चे ताली बजा-बजाकर ‘बापूजी चिढ़ गये, बापूजी चिढ़ गये, कहते हुए हँसने लगे । महापुरूष भी उस हास्मयरस में रम गया ।